क्या आप मानव शरीर के 7 चक्रों के बारे में जानते है जो की आपकी शरारिक और मानसिक स्वास्थ्य जुड़ा है

शरीर में सात प्रमुख ऊर्जा चक्र (चक्र) होते हैं, जिन्हें “मुख्य चक्र” या “गुह्य चक्र” कहा जाता है। इन चक्रों का सही से काम करना शरीर और मानसिक स्थिति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब ये चक्र ठीक से काम नहीं करते, तो इसके कई शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक नुकसान हो सकते हैं।

  1. मूलाधार चक्र (Root Chakra)

यह चक्र शरीर के आधार पर स्थित होता है और सुरक्षा, स्थिरता, और भौतिक जरूरतों से संबंधित होता है। अगर यह चक्र अवरुद्ध हो, तो व्यक्ति में असुरक्षा, डर, चिंता, और मानसिक असंतुलन हो सकता है। शारीरिक रूप से पैरों, रीढ़ और मलत्याग संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। यह चक्र रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित होता है, जो श्रोणि (पेल्विक) क्षेत्र के पास होता है। इसे हमारी शरीर की निचली त्रिकोणीय हड्डी, यानी कोक्सीक्स (Coccyx) के पास भी माना जाता है।

मूलाधार चक्र को संतुलित करने के उपाय।

  • मुद्राएँ (Hand Gestures): प्राणायाम और योग मुद्राएँ जैसे कि “गणेश मुद्रा” और “धनुरासन” का अभ्यास इस चक्र को सक्रिय करता है।
  • ध्यान: इस चक्र के लिए ध्यान केंद्रित करने के लिए “लम्”(lam) मंत्र का जाप किया जा सकता है।
  • तत्व और आहार: मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व है। संतुलित और पोषक आहार, विशेषकर लाल रंग के खाद्य पदार्थ जैसे टमाटर, सेब, गाजर आदि, इस चक्र को सक्रिय करने में मदद करते हैं।
  • प्राकृतिक गतिविधियाँ: पृथ्वी से जुड़ा महसूस करना, जैसे पैदल चलना, बागवानी करना या किसी प्राकृतिक स्थान पर समय बिताना, इस चक्र को संतुलित करने में मदद करता है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra)

स्वाधिष्ठान चक्र, हमारे शरीर के सात प्रमुख ऊर्जा केंद्रों में से दूसरा चक्र है। यह चक्र नाभि के नीचे, जांघों के बीच स्थित होता है यह चक्र संतुलन, रचनात्मकता, और यौन ऊर्जा से जुड़ा होता है। अगर यह चक्र ठीक से काम नहीं करता, तो व्यक्ति में असंतुलन, यौन समस्याएं, या मूड स्विंग्स हो सकते हैं रचनात्मकता में कमी या कला के प्रति रुचि की कमी आ आती हैं।

स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करने के उपाय।

  • आसन: “उत्तानासन” और “विपरीत करणी” जैसे आसनों से शरीर में ऊर्जा का संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
  • ध्यान: चक्र को सक्रिय करने के “वम”(vam)ध्वनि का उच्चारण करते है।
  • ध्यान और प्राणायाम: साधना या ध्यान करते वक्त, स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान केंद्रित करना मददगार हो सकता है। प्राणायाम तकनीक, जैसे “अनुलोम-विलोम” और “कपालभाती”, भी ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करते हैं।

स्वाधिष्ठान चक्र जल तत्व है जो संतुलन और समृद्धि हमारे जीवन को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बेहतर बना सकती है।

3. मणिपूर चक्र (Manipura Chakra)

यह चक्र शरीर के प्रमुख सात चक्रों में तीसरे स्थान पर स्थित होता है और इसे नाभि चक्र भी कहा जाता है। यह चक्र व्यक्ति की आंतरिक शक्ति, ऊर्जा, और आत्मविश्वास का प्रतीक है। जो व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और मानसिक स्थिति को प्रकट करता है।, और मानसिक स्थिति से संबंधित होता है। अगर यह चक्र अवरुद्ध हो, तो आत्मविश्वास की कमी, डर और संकोच पाचन संबंधी समस्याएं, जैसे कब्ज, गैस, या एसिडिटी अत्यधिक गुस्सा आता है

मणिपूर चक्र को संतुलित करने के उपाय।

  • आसन: “विपरीत करणी”, “उत्तानासन”, और “धनुरासन” जैसे योगासनों से मणिपूर चक्र को सक्रिय किया जा सकता है।
  • प्राणायाम: “कपालभाती” और “सूर्य भेदी प्राणायाम” जैसे प्राणायाम मणिपूर चक्र को संतुलित करने में मदद करते हैं।
  • ध्वनि: चक्र को सक्रिय करने के लिए “राम”(ram)ध्वनि का उच्चारण करते है

मणिपूर चक्र अग्नि तत्व है जो की संतुलित व्यक्ति अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को आत्मविश्वास से निपटता है। यह चक्र व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्यों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनाता है, जिससे वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है।

4. अनाहत चक्र (Anahata Chakra)

यह चक्र हृदय के पास स्थित होता है और इसे “कपल चक्र”भी कहा जाता है। अनाहत चक्र का संबंध प्रेम, करुणा और आंतरिक शांति से है। यह चक्र शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर संतुलन बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अनाहत चक्र का सही संतुलन और सक्रियण व्यक्ति के जीवन में प्यार, शांति, और सहानुभूति को बढ़ाता है।अवरुद्ध होने पर प्रेम और करुणा की कमी, आंतरिक ठंडापन। दूसरों के प्रति अविश्वास और नफरत भावनात्मक ठंडापन, या खुद को दूसरों से अलग महसूस करना नकारात्मकता, गुस्सा, ईर्ष्या, और अनावश्यक चिंता शारीरिक समस्याएँ जैसे हृदय संबंधित समस्याएँ, फेफड़ों की समस्याएँ, और श्वसन तंत्र में विकार।

अनाहत चक्र को संतुलित करने के उपाय।

  • प्राणायाम: जैसे कपालभाती, अनुलोम-विलोम, और भ्रामरी प्राणायाम अनाहत चक्र को सक्रिय और संतुलित करने में मदद करते हैं। इन्हें नियमित रूप से करने से मानसिक शांति और सकारात्मकता आती है।
  • ध्यान: अनाहत चक्र के लिए ध्यान करते समय, आप हृदय क्षेत्र में हल्के हरे या गुलाबी रंग की ऊर्जा की कल्पना कर सकते हैं। इससे इस चक्र का सक्रियण और संतुलन बढ़ता है
  • ध्वनि: “यम”(yam)ध्वनि अनाहत चक्र की मंत्र ध्वनि है, जिसे ध्यान या मंत्र जाप के दौरान उच्चारण किया जा सकता है।

अनाहत चक्र वायु तत्व है जो प्रेम, करुणा और भावनात्मक संतुलन का मुख्य स्रोत है। जब यह चक्र ठीक से सक्रिय और संतुलित होता है, तो व्यक्ति अपनी आंतरिक शांति, प्रेम, और सहानुभूति को महसूस करता है, जो न केवल उसके खुद के जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि उसके आस-पास के लोगों के जीवन को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

5. विशुद्ध चक्र (Vishuddha Chakra)

यह चक्र गले के क्षेत्र में स्थित होता है और विशेष रूप से संचार, अभिव्यक्ति, और सत्य से जुड़ा हुआ है। विशुद्ध चक्र आत्म-प्रकाशन और सच बोलने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है, और यह व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब यह चक्र संतुलित होता है, तो व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से और ईमानदारी से व्यक्त कर पाता है। अवरुद्ध होने पर विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने में समस्या। गुस्सा, झूठ बोलना, और मन में दबे हुए विचारों का प्रकट होना। शारीरिक समस्याएँ जैसे गले में संक्रमण, स्वरयंत्र की समस्याएँ (जैसे खराश या गला बैठना), और आवाज़ में कमजोरी। आत्म-संकोच, डर या शर्म, जो व्यक्तित्व को दबाता है। मानसिक तनाव और मानसिक अस्पष्टता लाता है।

विशुद्ध चक्र को संतुलित करने के उपाय।

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  • आसन: विशुद्ध चक्र को संतुलित करने के लिए कुछ विशिष्ट योगासनों का अभ्यास किया जा सकता है, जैसे उर्ध्वमुख शवासन (Upward Facing Dog), कपालभाती, और सार्वजनिक कंधा चक्र (Shoulder Bridge Pose)।
  • प्राणायाम: प्राणायाम तकनीकों जैसे कपालभाती और अनुलोम-विलोम से विशुद्ध चक्र को सक्रिय किया जा सकता है। ये श्वास की गति को नियंत्रित करने और मानसिक शांति बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • ध्यान: चक्र को सक्रिय करने के लिए “हम”(HAM) का उच्चारण किया जाता है। जो इस चक्र के साथ जुड़ा हुआ है। ध्यान करते समय नीला प्रकाश कल्पना करना भी लाभकारी हो सकता है।

विशुद्धि चक्र आकाश तत्व है जो सत्य बोलने और सुनने की क्षमता में सुधार करता है, जब यह चक्र सक्रिय और संतुलित होता है, तो व्यक्ति न केवल अपनी आवाज़ और विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है, बल्कि वह अपने अंदर के सत्य को भी पहचानता है। इस चक्र को संतुलित करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, संतुलन और मानसिक स्पष्टता आती है, और वह अपने रिश्तों में अधिक ईमानदारी और विश्वास का अनुभव करता है।

6. आज्ञा चक्र (Ajna Chakra)

यह चक्र मस्तिष्क के मध्य, दो भौंहों के बीच स्थित होता है, और इसे उच्च मानसिक शक्ति, आत्मज्ञान, और अंतरदृष्टि का केंद्र माना जाता है। आज्ञा चक्र आत्मा और मनुष्य के उच्चतम ज्ञान के बीच का सेतु है, और इसे आध्यात्मिक विकास और समग्रता का प्रतीक माना जाता है। आत्मज्ञान और उच्चतर सोच के प्रति एक गहरी समझ विकसित होती है। अवरुद्ध होने पर मानसिक अव्यक्तता, भ्रम, और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई डर और संकोच, जो आत्मज्ञान और आंतरिक आवाज़ को अवरुद्ध करते हैं। आँखों की समस्याएँ, जैसे कमजोर दृष्टि, सिरदर्द, या माइग्रेन। आत्म-संदेह, या अपने जीवन और उद्देश्य के बारे में भ्रम।

आज्ञा चक्र को संतुलित करने के उपाय।

  • आसन: कुछ विशिष्ट आसन जैसे सर्वांगासन, हलासन, और बालासन को ध्यान में रखते हुए अभ्यास किया जा सकता है। ये आसन मस्तिष्क को शांति देते हैं और मानसिक स्पष्टता में वृद्धि करते हैं।
  • प्राणायाम: जैसे कपालभाती, अनुलोम-विलोम, और नाड़ी शोधन प्राणायाम, आज्ञा चक्र को सक्रिय करने में मदद करते हैं। इनसे श्वास और मानसिक ऊर्जा का संतुलन स्थापित होता है।
  • ध्यान: ध्यान के दौरान, व्यक्ति अपनी तीसरी आँख पर ध्यान केंद्रित करता है और अपनी अंतरदृष्टि को बढ़ावा देता है। “ॐ”(om)मंत्र का उच्चारण करता है जो आज्ञा चक्र को सक्रिय करने में सहायक होता है।

आज्ञा चक्र प्रकाश तत्व है इसे सक्रिय करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक जागरण और जीवन में प्रगति होती है। इससे व्यक्ति की अंतरदृष्टि को बढ़ावा मिलता है और वह अपने आत्मा के उच्चतम सत्य को समझने में सक्षम होता है। आज्ञा चक्र आध्यात्मिक विकास, मानसिक स्पष्टता, और आत्मज्ञान का प्रमुख केंद्र है। यह चक्र जब सक्रिय और संतुलित होता है, तो व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति, दिव्य दृष्टि, और निर्णय क्षमता का पूर्ण रूप से अनुभव करता है। इस चक्र के माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक आवाज़ को पहचानता है और जीवन के उच्च उद्देश्य को समझने में सक्षम होता है।

7. सहस्त्रार चक्र (Crown Chakra)

यह चक्र सिर के शीर्ष पर स्थित होता है जहाँ से शरीर के ऊपरी हिस्से की ऊर्जा प्रसारित होती है। यह मुख्य कार्य आत्मसाक्षात्कार, उच्चतम ज्ञान और ब्रह्मा से एकता प्राप्त करना है। यह चक्र व्यक्ति को समग्रता और दिव्यता का अहसास कराता है। जब यह चक्र संतुलित होता है, तब व्यक्ति में एक गहरी मानसिक शांति, ज्ञान और दिव्यता का प्रवाह होता है। और अवरुद्ध होने से मानसिक उलझन और भ्रम आध्यात्मिक भावनाओं का अभाव अस्तित्व से पृथक होने का अहसास अवसाद या निराशा का अनुभव अपने उद्देश्य और दिशा का अभाव।

सहस्त्रार चक्र के संतुलन के लिए कुछ उपाय।

  • ध्यान: इस चक्र को ससहस्त्रार चक्र तत्व चेतना है जो संतुलन और खुला होना आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो व्यक्ति को उसकी सच्ची पहचान और ब्रह्मा से जुड़ी दिव्यता की अनुभूति दिलाता है।क्रिय करने के लिए ध्यान की साधना की जाती है। ध्यान करने से मानसिक शांति और उच्चतर चेतना के साथ संबंध स्थापित होता है।
  • योग: योग के आसनों से शरीर और मस्तिष्क को शांति मिलती है, जिससे सहस्त्रार चक्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • प्राकृतिक आहार और जीवनशैली: संतुलित और शुद्ध आहार इस चक्र को सक्रिय करने में मदद कर सकता है।
  • ध्वनी: चक्र को सक्रिय करने के लिए “आह”(aum or om) ध्वनी का उच्चारण किया जाता है

सहस्त्रार चक्र तत्व चेतना है जो संतुलन और खुला होना आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो व्यक्ति को उसकी सच्ची पहचान और ब्रह्मा से जुड़ी दिव्यता की अनुभूति दिलाता है।

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